Friday, 15 August 2014

ज़िन्दगी की आहतों ने छीन ली शरारतें

Special thanks to Jugnoo Mehta for the inspiration

ज़िन्दगी की आहतों  ने छीन ली शरारतें
लोग समझते हैं मग़रूर हो गया हूँ मैं

इश्क़ के बाज़ार में बद्नाम हुआ बैठा हूँ
लोग समझते है मशहूर हो गया हूँ मैं

आंसुओं को रोकने जो मुस्कराया करता हूँ
लोग समझते हैं ग़म से दूर हो गया हूँ मैं

तेरी याद से बचने जब भी खुद को जल्दी सुला दिया
लोग समझते हैं थक के चूर हो गया हूँ मैं

कल तक तैरे थे जिसकी होठों पे हँसी बनकर
आज उसी का सबसे बड़ा कसूर बन गया हूँ मैं

फिर भी भूल जो न पाऊँ उसे
आखिर क्यों इतना मजबूर हो गया हूँ मैं 

Saturday, 2 August 2014

गुज़रा इश्क़

बारिशों में भीगने से होता हासिल कुछ और नहीं
बस बचपने के कुछ साल यादों में ताज़ा हो जाते हैं
कागज़ की नाव तैराके होता हासिल कुछ और नहीं
बस इस चार दिन की ज़िन्दगी की कीमत समझ पाते हैं

बहुत वक़्त दिया तुझे हमसे इश्क़ करने को
जो तुझे इश्क़ न हो सका, अपनी तकदीर समझ जाते हैं
छोड़ के शहर तेरा कहीं और जा बसे है हम
फिर भी देखने तुझको साल में एक मर्तबा आते हैं

वाकई इश्क़ ये तेरा किसी बारिश से कम नहीं
जब भी याद करते हैं, बिन बरसात भीग जाते हैं
आशिक़ों में एक नाम हमारा भी लिख देना
हारे हुओं के झुण्ड में अक्सर पाये जाते हैं

बड़ी तकल्लुफ सी है तुझे हमसे बात करने में भी
बात करने पर कहाँ किसी को काट खाते है?
जो तेरे दिए ज़ख्म ज़िंदा है मेरे सीने में अभी तक
उन्हें कहाँ किसी से कभी हम बाँट पाते है

गर मौत भी आये तो तेरी सूरत में आये
तेरे हाथों से मरने की अब हम खैरात चाहते हैं
किसी और से इश्क़ की हिम्मत बाकी अब ना रही
इस ज़िन्दगी के दिन की यहीं अब रात चाहते हैं