Saturday, 2 August 2014

गुज़रा इश्क़

बारिशों में भीगने से होता हासिल कुछ और नहीं
बस बचपने के कुछ साल यादों में ताज़ा हो जाते हैं
कागज़ की नाव तैराके होता हासिल कुछ और नहीं
बस इस चार दिन की ज़िन्दगी की कीमत समझ पाते हैं

बहुत वक़्त दिया तुझे हमसे इश्क़ करने को
जो तुझे इश्क़ न हो सका, अपनी तकदीर समझ जाते हैं
छोड़ के शहर तेरा कहीं और जा बसे है हम
फिर भी देखने तुझको साल में एक मर्तबा आते हैं

वाकई इश्क़ ये तेरा किसी बारिश से कम नहीं
जब भी याद करते हैं, बिन बरसात भीग जाते हैं
आशिक़ों में एक नाम हमारा भी लिख देना
हारे हुओं के झुण्ड में अक्सर पाये जाते हैं

बड़ी तकल्लुफ सी है तुझे हमसे बात करने में भी
बात करने पर कहाँ किसी को काट खाते है?
जो तेरे दिए ज़ख्म ज़िंदा है मेरे सीने में अभी तक
उन्हें कहाँ किसी से कभी हम बाँट पाते है

गर मौत भी आये तो तेरी सूरत में आये
तेरे हाथों से मरने की अब हम खैरात चाहते हैं
किसी और से इश्क़ की हिम्मत बाकी अब ना रही
इस ज़िन्दगी के दिन की यहीं अब रात चाहते हैं 

No comments:

Post a Comment